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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
हीर भारत
मेयो कढ़ाई
मोची भारत

उत्तर -

राजस्थान की कढ़ाई
(Embroidery of Rajasthan)

राजस्थान सदा से "वीरों की भूमि" (Land of Warriors) रहा है। जब कभी भी भारत पर विदेशियों का आक्रमण हुआ, राजस्थान के वीरों ने उनके मनसूबे को कुचल डाला और प्राणों की परवाह न करके देश की रक्षा हेतु स्वयं को अर्पित कर दिया। वीरों की यश - गाथा की तरह ही राजस्थान की कढ़ाई सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। रंग-बिरंगे वस्त्रों पर रंग-बिरंगे चटकीले रंगों के रेशमी धागों से कढ़े राजस्थानी लहँगा - चुन्नी दूर-दूर के देशों में प्रख्यात हैं। यहाँ की कढ़ी हुई जूती एवं थैले भी काफी प्रसिद्ध हैं। घोड़े, ऊँट, हाथी पर लगने वाले वस्त्रों को भी अत्यन्त आकर्षक ढंग से सजाया जाता है।

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राजस्थानी कढ़ाई को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है-

(I) फोक कढ़ाई (Folk Embroidery),
(II) धार्मिक कढ़ाई (Religious Embroidery),
(III) कोर्ट कढ़ाई ( Court Embroidery)

(I) फोक कढ़ाई
(Folk Embroidery ) 

इस कढ़ाई को "भारत काम" (Bharat Kam) भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है " भराई का काम " (Eilling Work )। यह कढ़ाई सर्वप्रथम राजस्थान में जाट जाति (Jat Caste) की स्त्रियों द्वारा आरम्भ की गई थी। इसमें निम्नांकित टाँकों से नमूने बनाये जाते हैं- 1. मोची भारत (Mochi Bharat), 2. हीर भारत (Heer Bharat), 3. एप्लीक वर्क (Applique Work), 4. मोती का काम (Bead Work), 5. मेयो कढ़ाई (Meo Embroidery) तथा 6. जैसलमेर एप्लीक वर्क (Jaisalmer Applique Work)

1. मोची भारत (Mochi Bharat ) – “मोची भारत" टाँके को चैन टाँके (Chain Stitch) भी कहते हैं। मोची और मेघवाल जाति के लोग इस टाँके से जूते एवं जूतियों पर रंग-बिरंगे चटकीले रंगों के धागों से कढ़ाई करते हैं। राजस्थानी जूते एवं जूतियाँ सम्पूर्ण देश में प्रसिद्ध हैं। यहाँ के चैन टाँके (Chain Stitch) कच्छ की कढ़ाई से मिलती-जुलती है। चैन टाँके एक विशेष प्रकार के हुकनूमा सूई (Hooked Needle) से बनायी जाती है। इस सूई को “अरी” (Ari) या “कैथरनी" (Katharni) कहते हैं। इसमें धागे को उल्टी तरफ से सूई की सहायता से सीधी तरफ खींचते हैं। पहले नमूने के बाह्य रेखा को बना दिया जाता तत्पश्चात् भराई की जाती है।

प्राकृतिक स्रोत से नमूने लिये जाते हैं। मोर, तोता व अन्य पशु-पक्षियों के चित्र को काढ़े जाते हैं। फूल एवं लताओं को काँच या अभ्रक के छोटे-छोटे टुकड़ों से सजाया जात है।

2. हीर भारत (Heer Bharat ) - नमूने को धागे से भरने का काम ही "हीर भारत'" (Heer Bharat) कहलाता है। इसके लिए लम्बे एवं छोटे टाँके (Long and Short Stitch अथवा काज टाँके का उपयोग किया जाता है। यह कढ़ाई भी गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ की कढ़ाई से मिलती-जुलती है। यह कढ़ाई मुख्यतः सूती एवं ऊनी वस्त्रों पर की जाती है। कढ़ाई चटकीले रंगों के बिना बँटे ऊनी, सूती, रेयॉन अथवा रेशमी धाग (Untwisted thread) से की जाती है। सफेद, काला, लाल, हरा, पीला, नीला, गुलाबी और जामुनी रंगों को प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है।

यह कढ़ाई राजस्थान के क्षेत्र विशेष में भिन्न-भिन्न तरीकों से एवं विभिन्न टाँकों क उपयोग करके की जाती है। बाड़मेर में इसी कढ़ाई को सैटिन टाँके (Satin Stitch), काज टाँके (Buttonhole Stitch), हेरिंग बोन टाँके ( Hearing Bone Stitch) और डंडा टाँके (Stem Stitch) से करते हैं। हीर भारत कढ़ाई में काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों को काज टाँके से लगाकर वस्त्र को सजाया जाता है।

3. एप्लीक वर्क (Applique Work ) — राजस्थान मारवाड़ी स्त्रियाँ "एप्लीक वर्क' का अधिक काम करती हैं। वे एप्लीक वर्क द्वारा वस्त्र को सुसज्जित करने में निपुण एव कुशल होती हैं। राजस्थान का एप्लीक वर्क काठियावाड़ का “कटाब" (Katab) से मिलता-जुलता है।

सफेद पृष्ठभूमि पर रंगीन वस्त्रों के नमूने के अनुसार पेबंद (Patch) लगाये जाते हैं। एप्लीक वर्क में पशु-पक्षी, मानव आकृतियाँ आदि के नमूने काटकर विभिन्न टाँकों के उपयोग से वस्त्र पर लगाये जाते हैं। काज, टाँके, तुरपाई टाँके (Hem Stitch) अथव साधारण कच्चे टाँके (Simple Running Stitch) से पैच वस्त्र मुख्य वस्त्र पर लगाये जाते हैं।

आजकल एप्लीक वर्क से अलंकृत परिधानों एवं सजावट सामग्रियों की मांग काफी बढ़ी है। इससे बैग, सलवार-सूट, साड़ियाँ, कुशन कवर, सोफा कवर आदि को सुसज्जित किया जाता है।

4. मोती का काम (Bead Work ) — इसे "मोती भारत" (Moti Bharat) भी कहते हैं। यह कढ़ाई राजस्थान के जालौर जिले में काफी प्रसिद्ध है। इसमें भूमितीय, पशु-पक्षी मानव आकृति आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। बीड वर्क से टोपी, पर्स, तोरन, झूले, बच्चों के खिलौने आदि पर कढ़ाई की जाती है।

5. मेयो कढ़ाई (Meo Embroidery ) — इस कढ़ाई द्वारा नृत्य करती गुड़िया (Dancing Doll), मानव आकृतियाँ (Human Figures), नाचता मोर (Dancing Peacock) आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। चैन टाँके एवं डारनिंग टाँके (Chain Stitch and Dancing Stitch) मुख्यतः काम में लिये जाते हैं। चटकीले रंग के रेशमी धागे से कढ़ाई की जाती है। नमूने की पृष्ठभूमि डारनिंग टाँके से सुनहरे पीले रंग के धागे से बनायी जाती है। भराई का काम चैन टाँके (Chain Stitch) से किया जाता है। सफेद एवं काले रंग के धागे से मुख्यत: भराई का काम किया जाता है। परन्तु इसके अतिरिक्त कभी-कभी हरा, लाल, पीला तथा जामुनी रंगों का भी उपयोग किया जाता है।

मियो कढ़ाई राजस्थान के अलवर एवं भरतपुर जिलों में होती है। यह कढ़ाई पंजाब की फुलकारी से काफी मिलती-जुलती है।

6. जैसलमेर एप्लीक वर्क (Jaisalmer Applique Work ) – जैसलमेर क्षेत्र का एप्लीक वर्क मारवाड़ के एप्लीक वर्क से थोड़ा भिन्न होता है। क्योंकि इसमें पैच लगाने के बाद क्विल्टिंग (Quilting) की जाती है।

बंगाल की कांथा की तरह जैसलमेर का एप्लीक वर्क पर क्विल्टिंग का कार्य किया जाता है। इसमें पुराने वस्त्रों को कई तहों में व्यवस्थित करके, इसके दोनों तरफ (सीधे एवं उल्टी तरफ) नये वस्त्रों के साथ मिलाकर कच्चा टाँका अथवा डारनिंग टाँके से सिलाई करते हैं। बाद में सुन्दर नमूनों में रंगीन वस्त्र को काटकर पेबन्द (Patch) लगाते हैं। प्रायः हरे, भूरे, मैरून तथा काले रंगों के पैच लगाये जाते हैं।

(II) धार्मिक कढ़ाई
(Religious Embroidery )

राजस्थान में जैनों एवं वैष्णवों के अत्यन्त सुन्दर-सुन्दर मंदिर हैं। धार्मिक उत्सवों पर ये सभी मंदिरों में कढ़े हुए वस्त्र चढ़ाते हैं। यहाँ धार्मिक उद्देश्य से भी कढ़ाई की जाती है। ये कढ़ाई निम्नांकित है--

1. पिच्छवी कढ़ाई (Pichhavi Embroidery ) — उदयपुर के पास " नाथद्वारा" पिच्छवी कढ़ाई के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहाँ पौराणिक गाथाओं पर आधारित नमूने की कढ़ाई की जाती हैं, जैसे- कृष्णलीला, गोकुल वन, रासमण्डल, वृन्दावन, गोपी-कृष्ण, इत्यादि।

पारम्परिक पिच्छवी कढ़ाई रंगीन सूती, सैटिन अथवा वेलवेट के वस्त्रों पर की जाती है। नमूने प्राकृतिक स्रोत से लिये जाते हैं। पशु-पक्षी, फूल, लताओं, फल आदि के चित्रों को अत्यन्त सुन्दर तरीके से काढ़ा जाता है। यहाँ “श्रीनाथजी" के चित्र को काले रंग के वस्त्र पर काढ़ा जाता है।

2. जैन कढ़ाई (Jain Embroidery ) – राजस्थान में दिलवाड़ा एवं रणकपुर में जैनियों का प्रसिद्ध मन्दिर है। मंदिरों में चढ़ाने के लिए जैन स्त्रियाँ कढ़े हुए वस्त्र बनाती हैं। वस्त्र पर सुन्दर सुन्दर फूल, पत्तियों, लताओं आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। “मंडला" नमूने प्रमुख रूप से काढ़े जाते हैं। इसमें "स्वर्ग" (Heaven ) का अत्यन्त कलात्मक रूप से चित्रण किया जाता है। अद्विवीपा, अष्ट मंडल आदि के नमूने को भी अत्यन्त कुशलता एवं निपुणता पूर्वक चित्रित किया जाता है।

(III) कोर्ट कढ़ाई
(Court Embroidery )

इस कढ़ाई का प्रचार-प्रसार मुख्य रूप से मुगल शासकों के द्वारा किया गया। कढ़ाई में गोटा, सलमा, सितारा, काँच के छोटे-छोटे टुकड़े के अतिरिक्त कीमती पत्थर भी वस्त्र पर जड़ें होते हैं। राजे-महाराजे, महारानियाँ, सामंतों एवं धनाढ्य वर्ग के लोगों के लिए सोने-चाँदी के तारों से वस्त्र को अलंकृत किया जाता था। कोर्ट कढ़ाई मुख्य रूप से तीन प्रकार से की जाती थी, जो निम्नांकित हैं-

1. गोटा वर्क (Gota Work ) — इसमें सोने-चाँदी के सुनहरे - रूपहले तारों से कढ़ाई की जाती है। वस्त्र के बोर्डर को गोटा वर्क से सुसज्जित किया जाता है।

उल्टी बखिया (Back Stitch), कच्चा टाँका (Running Stitch) अथवा तुरपाई टाँके (Hem Stitch) से वस्त्र पर गोटा लगाया जाता है।

2. सलमा वर्क (Salma Work ) – मुगल शासक सलमा सितारों से अलंकृत वस्त्रों को बहुत अत्यधिक पसन्द करते थे। इसके अतिरिक्त राजे-महाराजे के परिधानों पर कीमती पत्थर, हीरे-जवाहरात, नीलम आदि के सोने-चाँदी के तारों से जड़े जाते थे।

जयपुर सलमा वर्क के लिए प्रसिद्ध है। सलमा वर्क -मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं - पहला जारडोजी (Zardozi) तथा दूसरा कामदानी। जारडोजी में कढ़ाई का काम सबसे अधिक होता है। सम्पूर्ण वस्त्र पर कढ़ाई की होती है। यह वस्त्र काफी महँगा होता है। विशेष अवसरों, शादी-विवाह आदि उत्सवों पर पहना जाता है।

कामदानी (Kamdani) जॉरजेट, शिफॉन एवं अन्य महीन वस्त्रों पर की जाती है। इसमें कढ़ाई हल्की होती है। यह जारडोजी से सस्ती होती है। अतः इसकी माँग जारडोजी की अपेक्षा अधिक होती है।

3. धांगा वर्क (Thread Work ) - इसमें सफेद अथवा हल्के रंग के मलमल के वस्त्र पर रंग-बिरंगे रेशमी धागों से कढ़ाई की जाती है। नमूने चैन, सैटिन और डंडी टाँके से बनाये जाते हैं।

राजस्थान की कढ़ाई अधिकाशंत: चटकीले रंग के रेशमी धागों से की जाती है तथा पर्स, बैग, जूते, परिधान, सजावट के सामान, बेड कवर, कुशन कवर, लहँगा-चुन्नी, साड़ियाँ आदि अलंकृत किये जाते हैं। यहाँ के कढ़े वस्त्रों की माँग विदेशों में भी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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